Monday, April 12, 2021

यादों का पिटारा




एक बोल है, नीले रंग का। पुराना है पर बहुत ख़ास है। ख़ास इसलिए क्योंकि वो तुम्हारा है। उसपर नज़र पड़ती है और ऐसा लगता है मानो तुम्हारी यादों ने गले लगा लिया हो।

चीज़ें, इनपे हमारा इख़्तियार होता है। तुम्हारे चले जाने पर मेरा बस नहीं था। 


'आप जाने दें इसे। इसके चले जाने से जितनी तक़लीफ़ आपको होगी, उससे कहीं ज़्यादा तक़लीफ़ इसे आपके पास रहने से हो रही है।' डॉक्टर ने कहा था।


तुम समझ सकते हो हमारी व्यथा? शायद नहीं। वो शायद सही कह रहे थे पर हम सेल्फ़िश होते हैं। हमें बस अपनी पड़ी होती है। पर तुम्ही सोचो, आसान है क्या ऐसे जाने देना?


पर इन सब के बावजूद रोक नहीं पाए तुम्हें जाने से। 


और भी जाने कितनी चीजें हैं। जैसे अलमारी में तह कर रखा तुम्हारा मुलायम लाल स्वेटर। जब भी अलमारी खोलती हूँ, वो ऐसे झांकता है जैसे मुस्कुरा रहा हो। पुराना सामान सिर्फ सामान नहीं होता, यादों का पिटारा होता है। उनपर नज़र पड़ती है और यादें दौड़ी चली आती है। कभी मीठी खुशबू की तरह, तो कभी धुआं। पर जैसी भी हों, अनमोल हैं ये यादे क्योंकि अब बस वही हैं।


जाने कितनी बातें, 

मुस्कुराहटें,

समेट लाते थे जहां से,

उस पते पर 

अब बस यादें रहती हैं।


2 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा पुराना सामान सिर्फ सामान नहीं होता, यादों का पिटारा होता है। वह हमें दूसरे वक्त में ले जाता है। मेरे साथ खुशबुओं के साथ भी ऐसा ही होता है। राह चलते चलते कई बार कोई विशेष खुशबू सूंघ लेता हूँ, जैसे किसी के किचन से आती दाल में पड़ी हींग की महक, तो एक दूसरे वक्त में और दूसरी जगह पहुँच जाता हूँ। खूबसूरत आलेख।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां, खुशबू भी कई दफ़ा अपने साथ पुरानी यादें ले आती है।
      पढ़ने के लिए बहुत शुक्रिया। 🙏

      Delete