'उस रोज़ दो घटनाएं हुई थीं। दिन में मोहल्ले वालों ने शुक्ला जी की टीवी पर रामायण देखा और रात में महाभारत हो गया.'
सत्य व्यास रचित 'दिल्ली दरबार' की कहानी कुछ ऐसे शुरू होती है, और पूरी किताब में आपको कई ऐसी या इससे भी बेहतर पंच लाइने मिल जाएंगी जो आपको मुस्कुराने पर मजबूर देंगी।
दिल्ली दरबार कहानी है हद से ज्यादा लापरवाह, दिलफेंक आशिक, और चालाक - कुल मिलाकर सर्व अवगुण संपन्न राहुल मिश्र की। ये कहानी है प्यार और दोस्ती की, और हर उस बात की जो एक माध्यम वर्गीय/छोटे शहर के युवाओं से सम्बंधित होती है।
और कथावाचक है उनके परम मित्र (और मेरे पसंदीदा पात्र), मोहित जो अपने मित्र से बिलकुल विपरीत स्वाभाव के हैं फिर भी उनका साथ किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ते। कहानी कहाँ से शुरू की जाये ये समझ नहीं आने के कारण मोहित कहानी शुरू करते है राहुल मिश्र की तुड़ाई से।
'इसकी शिकायत करते करते प्रिंसिपल रिटायर हो गया। इतनी बार शिकायत आयी है कि इसके कॉलेज में इससे ज्यादा अटेंडेंस तो मेरा होगा।' ये कहना है राहुल के पिताजी का।
रांची की बेपरवाह ज़िन्दगी को त्याग कर राहुल मिश्र और मोहित पहुचते है... सही पकडे हैं...दिल्ली। पढाई, जिसमे राहुल मिश्र की कोई रूचि नहीं है, छोड़कर वो रुख करते है लड़कियों का, जिसमे उनकी अत्यधिक रूचि है। और फिर शुरू होती है ज़िन्दगी की असल आपाधापी। राहुल मिश्र कैसे-कैसे और कहाँ-कहाँ फसेंगे (फसेंगे ये तो तय है) और स्वाभिक रूप से अपने परम मित्र को फसाएँगे? क्या उन्हें एहसास होगा की संभल जाने में ही भलाई है? क्या उन्हें कभी सच्चा प्यार होगा?
'प्रेम के कारण नहीं होते; परिणाम होते है पर प्रेम में परिणाम की चिंता तबतक नहीं होती जबतक देर न हो जाए।'
ये जानने के लिए आपको पढ़ना होगा दिल्ली दरबार। और अगर आप थ्री इडियट्स या फुकरे जैसी फिल्में पसंद करते हैं (हांलाकि इस किताब की कहानी बिलकुल अलग है) और अगर आप उत्तर भारत से आते हैं, तो आपको ये किताब निश्चिततौर पर पसंद आएगी। मैंने प्रदेश का जिक्र इसलिए किया है किया है क्योंकि इस किताब के संवादों में प्रादेशिक असर है। बिहार/झारखंड/यूपी की भाषा में 'खांटी बिहारी' संवाद हैं। मगर यही बात आपको गुदगुदा सकती है अगर आप इस प्रदेश से आते हैं।
ऐसा नहीं कह सकते की कहानी अलग है, मगर उसका प्रस्तुतीकरण अच्छा है। लेखन हल्का-फुल्का और मज़ेदार हैं। कहानी की गति अच्छी है और कई घटनाएं ऐसी हैं जो आपको हँसायेंगी। सभी पात्र/घटनाओं का अपना महत्व है। कहानी का अंत संतोषजनक है हालांकि ये कहानी कोई सन्देश देती नज़र नहीं आती।
चूँकि इस किताब में कई अंग्रेजी संवाद है, इसलिए - I'd like to conclude the review in my usual way. I really enjoyed reading this book. For me, it was a funny, witty and entertaining read!
I received this book from the publisher (Westland Books) for an honest review.
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