Photo by Nagesh Gaikwad (Unsplash.com)
दोपहर, जाने क्यों, अक्सर
बचपन की याद दिलाती है।
ये जो खुशबू, जानी पहचानी सी
कहीं से आयी है,
वो जो धूप ने पेड़ों की परछाइयाँ बनायी हैं
ये ख़ामोशी जो पसरी है हर तरफ
और इस बीच कोई धीमी सी धुन लहराई है
वो चटकीली सी तितली हर दोपहर
बैगनी फूलों पर मंडराती है
ये गौरैया जो फुदक कर
अभी-अभी खिड़की पर आ बैठी है,
ऐसा लगता है
मानो बचपन की कोई
याद साथ लाई है।
(ऐसा महसूस होता है कभी?)
Lovely!
ReplyDelete-Sonia
Thank you, Sonia!
DeleteSuch a lovely post
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