Sunday, January 6, 2019

बस यूं ही...



सूनी सी दोपहर
हवाओं में कुछ हरारत 
जरा सी सरसराहट से
पन्नों का पलट जाना,
और दरख्तों से छनकर आती
 मख़मली धूप।
और, बस यूं हींं
चली आती हैं
तुम्हारी यादों की गरमाहट।
यादों का क्या है,
कहीं से भी आ जाती हैं।
और तुम्हारी यादें...जाती ही कहां हैं,
बस यहीं फिरती हैं,
इन्हीं छोटी छोटी बातों के इर्द गिर्द।


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