मेरी पेंटिंग
ये वक्त जो हम साथ गुज़ारते हैं अनमोल है मेरे लिए। कभी बस यूं ही, चुपचाप शाम की ठंडी तासीर को ज़ज्ब करते हुए। तो कभी बस बातें ―बेवजह, बेमतलब की बातें। तकरीबन हर रोज़। इसी वक्त, इसी जगह पर। इसी पत्थर पर बैठकर। समंदर की मलंग सी लहरें जाने कितनी दफ़ा आती जाती रहती हैं। जैसे हमारी बातें सुनने आती हों।
और तुम! तुम इस वक्त से भी ज़्यादा अजीज़ हो। मेरी तरफ आते हुए जैसे तुम मुस्कुराते हो तो मेरा एक अजीब सी खुशी से भर जाता है। जब तुम अपनी आंखें सिकोड़कर देखते हो तो मैं समझ जाती हूँ कि तुम मेरी बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते। मुझे देखते ही जब तुम्हारे माथे पर बल पड़ जाते हैं तब मैं जान जाती हूँ कि तुम समझ गए हो कि मेरा मन आज कुछ भारी सा है। और जब तुम अपनी मुट्ठी लगातार खोलते बंद करते हो तब मैं समझ जाती हूँ कि तुम उदास हो।
मुलाकातों का सिलसिला बस यूं ही शुरु हो गया और कब ये ज़िन्दगी का हिस्सा बन गया मुझे नहीं मालूम। ये मुलाकातें तुम्हारे लिए भी अहम हैं, जानती हूं मैं। क्योंकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं इंतजार करती रही और तुम नहीं आए। हां देर तुम्हें अक्सर हो जाती है। तुम बड़े नाम वाले हो, व्यस्त रहते हो। और मैं...मैं तो कुछ भी नहीं।
तुम शायद नहीं जानते पर मेरी धड़कनें तेज़ हो जाती हैं जब भी तुम मुझे देखते हो। पता नहीं ये कब हुआ? शायद उस दिन जब कुछ कहा था तुमने, इतनी नाराज़ होने वाली बात नहीं थी फिर भी मैं उठ कर जाने लगी थी और तुमने अचानक मेरा हाथ पकड़ लिया जैसे वो करना उस वक्त तुम्हारे लिए सबसे ज़्यादा जरूरी हो। 'मत जाओ।' तुमने कहा था।
मेरी नज़रें हमारे हाथों पर टिक गयीं और तुमने अपना हाथ हटा लिया। 'सॉरी।' तुमने धीरे से कहा।
'इट्स ओक,' मैंने कहा और वापस तुम्हारे बगल वाले पत्थर पर बैठ गयी। वक्त की कोई परवाह नहीं थी । मेरी धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि मुझे लग रहा था कि तुम सुन न लो कहीं। कुछ अजीब सा था तुम्हारी आवाज़ में ―मत जाओ...
उस दिन देर हो गयी थी और तुमने मुझे घर छोड़ा था, तबतक मेरी बिल्डिंग के बाहर खड़े थे जबतक मैं अंदर नहीं चली गयी।
मुझे लगता है कि मैं तुम्हें अपने दिल की सारी बातें बता सकती हूँ क्योंकि तुम समझते हो। काश! मैं तुम्हें वो बता सकती जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करने लगी हूँ। क्या तुम समझोगे? पर डरती हूँ। वो सब कह देने से कहीं जो हमारे दरमियां है वो बदल गया तो? ये सुखद एहसास जो हमारे बीच है असहजता में तब्दील हो गया तो? ये साथ, ये दोस्ती, ये अपनापन... नहीं ये मैं किसी हालत में नहीं खो सकती। कभी नहीं।
'कुछ कहा तुमने?' तुमने अचानक पूछा। तुम्हारा शांत चेहरा शाम के रंग में रंगा है, और तुम्हारी गहरी आंखें मुझपर टिकी हैं।
ओहो, क्या मैंने सोचते सोचते कुछ कह भी दिया है? मैं भी ना। 'क्या?' मैंने बेपरवाही ओढ़कर कहा।
'मुझे लगा तुमने कुछ कहा।'
'नहीं, नहीं तो।' मैंने हवाओं के पीछे भागते मेरे बालों को समेटते हुए कहा।
तुम धीरे से मुस्काए और फिर हम दोनों डूबते सूरज को निहारने लगे। ऐसा लग रहा है मानो ये सुर्ख सूरज बेचैन समंदर को बस चूमने वाला है। आसमान में बिखरे रंग सागर की सतह पर बिखर गए हैं।
मेरी नज़रें अनायास तुम्हारी तरफ मुड़ गयीं। घुंघराले बाल, तीखी सी नाक, चेहरे पर हल्की दाढ़ी...अच्छा बताओ अभी अगर मैं तुम्हारे गालों को छू लूं तो तुम क्या करोगे? क्या अपनी आंखें मूंद लोगे और मेरे हाथों के लम्स को महसूस करोगे? या चौंक कर पीछे हट जाओगे और मुझे अजीब नज़रों से देखोगे?
मैं अक्सर सोचती हूँ कि तुम्हारे ज़ेहन में क्या ख़्याल आता है जब तुम मुझे देखते हो? क्या तुम भी मुझे सोचते हो जब मैं पास नहीं होती? क्या तुम्हारा दिल भी बेचैन होता है जब हम कुछ दिनों तक मिल नहीं पाते? या फिर क्या तुम भी वही महसूस करते हो जो मैं महसूस करती हूँ और कहने से डरते हो जैसे मैं डरती हूं?
तुमने एक लम्बी सांस भरी और मेरी तरफ देखा। एक धीमी मुस्कुराहट हम दोनों के होठों पर उतर आयी। शाम गहराने लगी है। अब चलने का वक्त हो गया है।
It's a Hindi translation of my English story 'What If I Tell You'. When you can't think of fresh content, you translate your old work. :)
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