किताब: नीना आँटी
लेखिका: अनुकृति उपाध्याय
प्रकाशक: राजपाल
पृष्ठ: 112
कीमत (पेपरबैक): ₹170 (अमेजन पर)
पुस्तक स्रोत: ब्लॉगचैटर
मुझे लगता है कि कहानी के पात्र उस कहानी के स्तंभ होते हैं। एक पाठक के तौर पर मुझे कोई कहानी कितनी पसंद या नहीं पसंद आएगी, ये बहुत हद तक उस कहानी के पात्रों पर निर्भर करता है। दिलचस्प किरदार कहानी को और दिलचस्प बनाते हैं। और नीना आँटी एक बहुत ही दिलचस्प किरदार है। साहसी, स्वतंत्र, स्वछंद और अपने मन की करने वाली और रहस्यमयी।
जैसा कि कहानी में कहा है कि उनका इतिहास है। काफी लम्बा चौड़ा इतिहास है।
नीना आँटी कहती हैं, "मन की करना आसान नहीं, जीजी, मन का करने से पहले अपना मन जानना जरूरी है।"
कहानी शुरू होती है जब सुदीपा, नीना आँटी की भांजी, उनसे मिलने उनके बंगले पर आती है। जहां नीना आँटी अकेली रहती हैं। वो हमेशा से अकेली ही रहती आई हैं। उनकी बहनें कहती भी हैं कि 'एकलखोरी है नीना।'
सुदीपा इस कहानी की सूत्रधार है जो शायद नीना आँटी को सबसे ज़्यादा समझती है, या यूं कहें कि समझने की कोशिश करती है क्योंकि समझता तो उन्हें कोई भी नहीं।
कहानी का अधिकांश हिस्सा फ़्लैशबैक में है। नीना आँटी का इतिहास, उनकी कहानी कई किरदारों से होकर सुदीपा तक पहुंचती है और सुदीपा से हम पाठकों तक।
किरदारों की बात करें तो इस कहानी में कई किरदार हैं। ज़ाहिर है, नीना आँटी एक बहुत बड़े परिवार का हिस्सा हैं (जहाँ से वो कई दफ़ा बेदख़ल हो चुकी हैं) और परिवार के हर सदस्य की उनके बारे में अपनी राय है जो एक दूसरे से कुछ खास अलग नहीं है।
अच्छी बात ये है इतने सारे किरदार मिलकर भी आपको कन्फ़्यूज़ नहीं करते। सबकी अपनी पहचान हैं और ये बहुत रियलिस्टिक लगते हैं। जैसे मृणाल मौसी डांटती भी मीठे अन्दाज़ में हैं वो 'मीठी मौसी'। और लीला मौसी हैं 'बच्चू मौसी' क्योंकि दूध न पीने पर वो अक्सर बच्चों को धमकाया करती थीं कि 'बच्चू अभी बताते हैं तुम्हारी मम्मी को…'
ये सब, और साथ ही साथ इनका व्यवहार और बातचीत बहुत चिर परिचित सा लगता है।
बातचीत की बात करें तो इस कहानी के संवाद बहुत ही सरल और सहज हैं। बिल्कुल वैसे जैसे हम आमतौर पर बातें करते हैं। जरा भी बनावटीपन नहीं। अनुकृति जी ने कई अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया है। पर वो सिर्फ संवादों में इस्तेमाल किए गये हैं सो बिल्कुल नहीं खटकते। बल्कि संवादों और किरदारों को रियलिस्टिक बनाते हैं।
अनुकृति जी का लेखन अच्छा है, आपको बांधकर रखता है। वो एक अनुभवी लेखिका हैं ये उनके लिखने से अंदाज़ से ज़ाहिर होता है। उनके शब्दों के साथ आपकी कल्पना अपनी उड़ान भरती है। सिर्फ अच्छी लेखिका ही नहीं, वो बहुत अच्छी कहानीकार हैं। कुछ कोट्स बहुत अच्छे हैं।
"किसी एक के भूल जाने या नकारने से तुम्हारी याद झूठी नहीं पड़ जाती। अक्सर हमारी स्मृतियां एक दूसरे से मेल नही खातीं, जो जैसा तुम्हें याद रहता है, वह वैसा ही दूसरों को नहीं।"
एक ख़ास बात ये है कि लेखन बिल्कुल निष्पक्ष है। आप अगर नीना आँटी को समझने का प्रयास करते हैं तो आप उन किरदारों को भी समझने की कोशिश करते हैं जो नीना आँटी को, उनके निर्णय को समझ नहीं पाते।
कहानी में कई दिलचस्प मोड़ हैं जो आपकी उत्सुकता बनाए रखते हैं।
कुल मिलाकर मुझे ये कहानी अच्छी लगी। जैसा मैंने पहले कहा, इस कहानी में और अनुकृति जी के लेखन में पाठकों को बांध कर रखने की क्षमता है। एक बात जो मुझे इतनी संतोषजनक नहीं लगी, वो है इसका अंत। कहानी एक अच्छे अंदाज़ से ख़त्म होती है, पर इस कहानी में कई रहस्य हैं, कई सवाल हैं जो कहानी पढ़ते वक्त आपके ज़ेहन में उभरते हैं पर कुछ रहस्य और सवाल अंत तक अनसुलझे ही रह जाते हैं।
बहरहाल, अगर आपको हिंदी कहानियां पढ़ना पसंद है, तो आपको ये कहानी पढ़नी चाहिए, आपको पसंद आएगी।
शुक्रिया ब्लॉगचैटर, रिव्यू कॉपी के लिए।
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