Saturday, April 1, 2023

वो चिट्ठियाँ जो लिखी ही नहीं...


Photo: My watercolour painting


अच्छा, सुनो!

उस दिन क्या कहा था तुमने? जब हम गंगा के तट पर मिले थे। पीली साड़ी में तुम ऐसी लग रही थी मानो तुमपर सुबह का सुनहरा रंग उतर आया हो। और जब तुम बातें कर रही थी... तो जैसे तुम्हारी आँखों में नदी की लहरों की चंचलता थिरकने लगी। और फिर...तुमने मेरी आँखों में देखा तो मुझे ऐसा लगा मानो मेरे मन के अंधेरे कोने रौशन हो उठे हों। मैंने नज़रें हटा लीं, और मेरे अंदर एक अजीब सा मीठा शोर उमड़ने लगा। 

मैं जब तुम्हें देखता हूँ तो कुछ सुन नहीं पाता। जानता हूँ कि ये आदत अच्छी नहीं। पर क्या करूँ? 

अगली बार जब तुमसे मिलने आऊंगा तो ये ख़त जो मैंने लिखा है, मेरी जेब में होगा पर वो तुम्हें दे नहीं पाऊँगा। ऐसे कितने ही ख़त हैं जो मेरी स्टडी टेबल की दराज में रखे हैं, और कुछ मेरी अलमारी में, मेरे कपड़ों की तहों के बीच। और जाने कितनी चिट्ठियाँ हैं जो मैंने लिखी ही नहीं, वो जो मैंने अपने दिल में सहेज कर रखी हैं।

तुम्हें अपने मन के कोनों में,
छुपाकर रखना अच्छा लगता है
इक राज़ की तरह...


―तरंग सिन्हा

मेरी कहानी अमलतास

―――――――――――――――――――

Happy to share my recently published works:


My short story in The Hindu

My new Hindi story for Neelesh Misra's show, Yaadon Ka Idiot Box

My article on including Time and Senses in your writing for Blogchatter


―――――――――――――――――――



4 comments: