Image: Simon Maisch, Unsplash
बादलों का इतना काला, घना, उमड़ता घुमड़ता रूप मैंने पहले नहीं देखा। ऐसा लगता है जैसे दोपहर ही में दिन ढल गया हो। मैं एक पहाड़ी के छोर पर खड़ी हूँ ―पीछे एक पुराना, टूटा फूटा सा खंडहर है और सामने खाई। ये कौन सी जगह है और मैं यहाँ जाने क्यों खड़ी हूँ?
फिर अचानक तेज़ हवा चलने लगी, जैसे किसी तूफ़ान का आग़ाज़। दूर पहाड़ बस एक खौफ़नाक परछाइयों से लग रहे हैं और पेड़ मतंग। मन घबराने लगा है। कहीं मेरा पैर फिसल गया तो? मैं पीछे मुड़ना चाहती हूँ पर जैसे कोई रोक रहा हो। और तभी पीछे से किसी ने मेरा हाथ पकड़ा। मजबूती से और नरमी से भी। मैं एक पल में समझ गयी कि ये तुम हो। मैंने पलट कर देखा। तुम ही तो हो। तुम्हारे स्पर्श में एक सुकून है, और नज़रों में आश्वासन। और…कुछ और भी…
तुम थोड़े और करीब आए और अपने दूसरे हाथ से मेरे बिखरे बालों को बहुत हल्के से मेरे चेहरे से हटा दिया। इस छोटी सी बात में कितना अपनापन है। तभी आकाश में बिजली की एक लहर दौड़ी और फिर उसके बाद बादलों का भयंकर गर्जन।
मैं चौंक उठी और तुम नज़रों से ओझल हो गए। मैं अपने बिस्तर पर हूँ। खिड़की के बाहर बादल वाकई घिर आए हैं।
तो ये एक ख़्वाब था।
मैं अपने हाथों पर तुम्हारे हाथ का लम्स अब भी महसूस कर सकती हूँ। और मेरे दिल की धड़कनें अब भी तेज़ हैं।
ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं अपने ख़्वाब में तुम्हारे स्पर्श को पहचान लूं? जबकि तुमने मुझे कभी छुआ ही नहीं?
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