आस्था...
मानो अंतरात्मा की पुकार
जैसे खोल दिए हों किसी के वास्ते
अपने मन के द्वार
जुड़ गए हों किसी से
मन के तार
उसकी हो अराधना
उसी की हो आस
डिगा न सके कोई
ऐसा दृढ़ हो विश्वास
अंधी आस्था में धोखा न खा जाना कहीं
भरोसा हो ऐसा
जो प्रदीप्त करे जीवन पथ को
दूर हो अज्ञान का अंधियारा
ज्ञान का प्रकाशपुंज विसरित हो.
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