Wednesday, June 14, 2023

एक चुटकी प्यार...(A story by Namrata, Translated by Tarang)





So, it's Namrata's birthday. She's a writer, reader, editor and a dear (and my first virtual) friend. We met in 2011/2012, I think, through our blogs, however we haven't met yet. :)

Today, I'm posting one of her short stories, 'A Pinch of Love (from her short story collection, Metro Diaries 2) that I translated into Hindi. Thank you, N, for allowing me to translate your lovely story. And happy birthday! 🌻


एक चुटकी प्यार...


'अम्मा…उप्पू…’ (माँ…नमक!)

पद्मा डायनिंग टेबल पर से ही चिल्लाई। फिर अपने उबलते गुस्से को संयत करने के ख़्याल से उसने गहरी साँसें भरीं, जैसा कि उसके योगा इंस्ट्रक्टर ने सिखाया था। आज उसकी माँ ने उसके ही कहने पर नाश्ते में उसका पसंदीदा उपमा बनाया था, पर हर बार की तरह, आज भी नमक डालना भूल गयी थी। 


'ओह, मैं भूल गई।' कहकर उसकी माँ हौले से हँस पड़ी। 'इतनी मामूली सी बात इस तरह कोई कैसे भूल सकता है भला?' उन्होंने कहा और रसोई की ओर चली गयीं। 


पद्मा को अपने स्कूल के दिन याद आ गए जब उसकी माँ अक्सर दूध में चीनी डालना भूल जाया करती। बड़ी कोफ़्त होती थी उसे, सुबह सुबह ही चिढ़ जाती। खाने में नमक डालना भूल जाना तो आम बात थी। अब तो वो आए दिन कोई न कोई नयी बात भूल ही जाती थीं।


पद्मा को वो दिन अच्छी तरह याद था जब वो तेरह बरस की हुई थी, टीनएज का पहला पड़ाव। अपने जन्मदिन के लिए उसने खास तौर पर गुलाबी रंग के फ़्रॉक की फ़रमाइश की थी, मगर माँ वो बात ऐसे भूल गयी जैसे पद्मा ने ये बात कही ही नहीं थी। वो उसके लिए लाल रंग की ड्रेस ले आयी थीं। ठीक है, उस ड्रेस की बहुत तारीफ़ हुई थी पर वो गुलाबी तो नहीं था न। मन का चाहा ना मिलने की तक़लीफ़ एक टीनएज मन ही समझ सकता है। और इससे भी बड़ी बात तो तब हुई जब माँ गैस चूल्हे पर कुछ चढ़ा कर दूसरे कामों में लग गयीं थीं। जब तक वो लौटीं, बर्तन में सिर्फ़ कालिख़ बची थी। 


दस बरस की उम्र तक पद्मा ने इन बातों पर इतना ध्यान नहीं दिया, मगर धीरे-धीरे उसे समझ आने लगा। उसे इस बात से शदीद कोफ़्त होती कि उसके पापा, जो नियमों के इतने पाबंद थे, अपनी बीवी से बेहद प्यार करते थे, वो बीवी जो मिस भुलक्कड़ का अंतरराष्ट्रीय दर्जे का ख़िताब बड़ी आसानी से जीत सकती थीं।


पद्मा ने टीनएज की दहलीज़ पर कदम रखा तो उसे धीरे-धीरे ये समझ आने लगा कि ज़िन्दगी में एक हमसफ़र की अहमियत क्या होती है, और उसके साथ तालमेल बिठाना कितना जरूरी होता है। उसके ज़ेहन में एक साथी की तसवीर उभरने लगी थी और उसे लेकर पहली चीज़ जो उसके मन में आयी वो ये थी कि वो भुलक्कड़ तो बिल्कुल ना हो। 


माँ रसोई से नमक का डब्बा लेकर आयी तो पद्मा भी अपने ख़्यालों से बाहर आ गयी। 'सॉरी, बेटा,' माँ ने कहा और उसके गालों को चूम लिया। 


जाने क्यों मन खिन्न सा हो गया। पद्मा उठकर खड़ी हो गयी और फिर लिविंग रूम की ओर चल पड़ी। उसके पापा अखबार में मशग़ूल थे। 'पापा, बहुत दिनों से आपसे एक बात पूछना चाह रही थी।' पद्मा ने कहा तो उसके पापा अखबार से अपनी नज़रें हटाकर उसे देखने लगे। 'प्लीज़, आप बुरा मन मानिएगा पर आज मुझे मेरे सवाल का जवाब चाहिए।'


'हाँ बेटा, बोलो।' उसके पापा ने अखबार मोड़कर परे सरका दिया। 


पद्मा एक पल को हिचकिचाई, फिर बोली, 'आपने किस तरह माँ जैसी इंसान के साथ इतने साल गुज़ार दिए? मतलब, माँ अच्छी हैं पर उन्हें तो कुछ भी याद नहीं रहता। और आप तो हर चीज़ को बिल्कुल सही तरीके से करने के आदी हैं। आपको माँ के ऐसे स्वभाव से चिढ़ नहीं होती?' पद्मा ने सब एक साँस में ही कह दिया।


पापा धीरे से मुस्कुराए फिर बोले, 'बेटा, जब हमारी शादी हुई थी तब वक्त कुछ और था। हम संयुक्त परिवार में रहते थे। आए दिन घर में कई ऐसी बातें होती रहती थीं जिसे एक युद्ध का आग़ाज़ माना जा सकता था। तुम्हारी माँ उस परिवार का हिस्सा बनी तो मैं पशोपेश में था क्योंकि मैं उसे ठीक से जानता तक नहीं था। पर उसने अपने कोमल स्वभाव से ना सिर्फ सबका दिल जीत लिया बल्कि झगड़े की आहट को हँसी की खनखनाहट में डुबो दिया।' पापा खिड़की से बाहर देखने लगे। दो दिनों की बारिश के बाद आज खिली खिली सी धूप बिखरी थी। 


पापा ने पद्मा की ओर देखा। 'अपनी भूल जाने वाली आदत की वजह से तुम्हारी माँ कई दिल दुखाने वाली बातों को भी भूल जाया करती है। पर एक बात वो कभी नहीं भूलती,' पापा ने कहा तो पद्मा की आँखों में सवाल उतर आया।


'वो क्या?'


'प्यार। जरूरी नहीं कि ज़िन्दगी में सबकुछ याद ही रखा जाए। कभी-कभी कुछ चीज़ों को भूल जाना ही बेहतर होता है। और ये बात मैंने तुम्हारी माँ सीखा है। जब तक वो ज़िन्दगी के उस सच्चे एहसास ―यानि कि प्यार को याद रखती है, क्या फ़र्क पड़ता है कि अगर वो कभी चुटकी भर नमक या चीनी डालना भूल जाए? इतना तो हम मैनेज कर सकते हैं ना?' 


पद्मा के होठों पर मुस्कुराहट तैर गयी और आँखों में थोड़ी नमी। आज उसके पापा ने प्यार की एक नयी परिभाषा दी थी, और ये समझाया था कि प्यार बस एक रूमानी सी तस्वीर नहीं है जो अब तक उसके ज़ेहन में बसी थी। प्यार के कई और खूबसूरत रंग होते हैं।



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3 comments:

  1. This reads so beautifully, Tarang! Thank you so much for translating one of my favorite stories. And also for this lovely birthday gift. This gesture means a lot to me.

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  2. What a sweet story. I am now tempted to read the original.

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