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एक रोज़ तुमने कहा था ― 'अंधेरे से कभी डरना नहीं। मैं रहूंगा, हमेशा, तुम्हारा हाथ थामने को। थोड़ी देर हो भी जाए गर तो इंतज़ार करना। हम साथ चलेंगे, उन्हीं अंधेरों में ढ़ूंढ़ लेंगे वो राह जो हमें रौशनी तक ले जाए।'
और मेरे होठों पर अनायास एक मुस्कुराहट चली आयी।
बहुत देर हो गयी इस दफ़ा, मैं अब भी इंतज़ार में हूँ। इन्हीं अंधेरों में इक आशियाना बना कर।
कभी कहा नहीं तुम्हें पर मैं अंधेरे से डरती नहीं। ऐसा भी नहीं कि कोई राह ढ़ूंढ़ पाना नामुमकिन होगा मेरे लिए।
पर तुम्हारा वो साथ, मेरे हाथों में तुम्हारा हाथ ―वो मुझे रौशनी से भी ज़्यादा अजीज़ है।
मैं यहीं हूँ, यहीं रहूंगी।
तुम...तुम आओगे ना?
―तरंग सिन्हा
रोचक... इन किरदारों के विषय में सोचने को मजबूर कर रहा है ये टुकड़ा... कौन हैं? कैसे अलग हुए? आगे क्या होगा...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया। :)
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