बचपन में कॉमिक्स, नंदन, चंपक, सुमन सौरभ, इत्यादि तो हम सब ने पढ़ा है पर अगर मुझे कोई पूछे कि एक पाठक के तौर पर मेरा सबसे पहला उपन्यास कौन सा तो मेरा जवाब होगा ―कृश्न चंदर द्वारा लिखी 'सितारों से आगे'। ये एक फ़ैंटेसी/साइंस फिक्शन है जो बच्चों वाली मज़ेदार किताब है। पर बच्चों वाली किताबें तो बड़ों को भी अक्सर अच्छी लगती हैं, है न?
वैसे मुझसे किसी ने पूछा तो नहीं पर 23 अगस्त को जब हमारे चंद्रयान 3 ने चाँद के साउथ पर सफलतापूर्वक पहुँच कर इतिहास रचा, तो मुझे अनायास ही इस किताब की याद आ गयी। क्योंकि इस किताब में भी कुछ बच्चे चाँद पर पहुँच जाते है और फिर वहाँ वो अजीबोग़रीब लोगों और घटनाओं से मुख़ातिब होते हैं। लेखक ने अपनी कलम से अद्भुत और बेहद रोमांचक चाँद की दुनियां रची है।
एक अरसा हो गया इस किताब को पढ़े इसलिए मुझे पूरी कहानी तो याद नहीं पर इतना जरूर याद है कि इस उपन्यास को पढ़ने में बड़ा मज़ा आया था। एक बार में पूरी किताब पढ़ गयी थी (वो ज़माना और था जब हम ऐसा कर सकते थे)। रोमांच इस बात का भी था कि मैं, एक छोटी सी बच्ची, उपन्यास पढ़ रही थी और मेरे दादाजी को इस बात से कोई समस्या नहीं थी।
मैं रोमांचित हूँ कि ये किताब अमेज़न पर अब भी उपलब्ध है जिसे पेंग्विन बुक्स ने प्रकाशित किया है। और मैं इसे अपने बेटे के लिए खरीदूंगी। उस किताब को मैं पढ़ूंगी या नहीं, इसका अंदाज़ा लगाने के लिए किसी को कोई प्वाइंट्स नहीं मिलेंगे।
साइंस की बात हो रही है तो मैं प्रोफ़ेसर दिवाकर की किताबों के बारे में बात किए बिना नहीं जा सकती। बहुत दिलचस्प किताबें होती थीं उनकी। अब हमारे पास (मेरे भाई के पास) बस एक किताब बची है ―शुक्र ग्रह पर धावा। कई साल पहले जब मैंने एक बुकशॉप में प्रोफ़ेसर दिवाकर की किताबों के बारे में पूछा तो उसने उल्टा मुझी से पूछा कि ―'प्रोफ़ेसर दिवाकर कौन हैं?'
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सितारों से आगे के विषय में आपके ब्लॉग से ही पता चला था। तभी मैंने इसे खरीद लिया था। फिर यह मेरे घर रह गया। अब इधर आया हूँ तो इस माह इसे पढ़ूँगा।
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