Image: Nighthawk Shoots, Unsplash
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दरवाज़े की घंटी बजी तो मिनी चौंक गयी। इस वक्त कौन हो सकता था? उसने खिड़की से बाहर देखा तो बारिश तेज़ थी। स्ट्रीट लाइट में बूंदें झिलमिला रही थीं।
घंटी फिर बजी तो उसने दरवाज़े पर लगे पीपहोल से झांक कर देखा तो और ज़्यादा चौंक गयी। 'तुम?' उसने दरवाज़ा खोलकर कहा।
'हाँ, तो? नहीं आ सकती मैं तुम्हारे घर?'
'हाँ, आ सकती हो। मतलब इतनी रात को, बारिश भी हो रही है। और अकेली?'
'देर हो जाती है, कभी-कभी,' उसने मिनी की आंखों में झांक कर धीरे से कहा। 'और अकेली?' वो बेसाख़्ता अंदर आ गयी। 'मिनी, मैं कोई बच्ची नहीं हूँ, माँ हूँ तुम्हारी।'
वो जाकर सोफे पर बैठ गयी और मुस्कुरायी तो जैसे मिनी के एक कमरे का घर भी जवाब में मुस्कुरा दिया। 'तुम झगड़ा कर के आयी थी तो मेरा दिल नहीं लग रहा था,' माँ ने कहा तो मिनी का मन ग्लानि से भर गया। वो वहीं पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी।
वो पिछले हफ़्ते ही घर से लौटी थी। माँ को उसका यूं बड़े शहर में अकेला रहना पसंद नहीं था। कहती, तुम लड़की हो…हर बार की वही चिखचिख थी।
'तो क्या इतनी अच्छी नौकरी छोड़ दूं और यहां आकर घर बैठ जाऊं? आम अ ट्वेंटी सेवन ईयर ओल्ड वोमन, मैं खयाल रख सकती हूँ अपना,' मिनी ने चिढ़कर कहा था।
'वही तो।' माँ ने अपना दूसरा पासा फेंका। 'अब सत्ताईस साल की हो गयी हो। शादी कब करोगी? बच्चे कब होंगे?'
'हाँ, ज़िन्दगी में कुछ ना करूँ; किसी से भी शादी कर लूं और फिर किचन और बच्चे संभालती फिरूं, तुम्हारी तरह,' मिनी ने तपाक से कहा था। नहीं, कहा नहीं था, उसके मुंह से निकल गया था। माँ का चेहरा कैसे बुझ गया था। पापा भी हैरान होकर उसे देखने लगे थे। मिनी का दिल बैठ गया।
वो कहना चाहती थी कि 'मेरा वो मतलब नहीं था, कि… आप तो जानते हो कि मैं कितनी जल्दी चिढ़ जाती हूं।' पर वो जानती थी कि अभी वो सब कहना बेमानी था। उसने दिल दुखाया था उनका। पर ये भी जानती थी कि वो उसकी बात दिल में नहीं रखेंगे, माफ़ कर देंगे उसे। हमेशा माफ़ कर देते हैं, शायद इसलिए बदतमीज़ी कर देना आसान होता है।
'अच्छा घर है वैसे तेरा। छोटा सा है पर अच्छा है।' माँ नज़रें घुमाकर इधर उधर देख रही थी।
'माँ, मैं―' मिनी ने बोलना शुरु किया पर माँ ने टोक दिया।
'कोई बात नहीं। तब मैं थोड़ी नाराज़ थी पर अब नहीं हूँ। और मैंने सोच लिया है कि अब उस बात पर कभी चिखचिख नहीं करूंगी। सबको अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीने का अधिकार है,' माँ ने अपने मरून कलर की तांत की साड़ी के प्लीट्स को ठीक करते हुए कहा। मिनी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि माँ ने झट से अपना एक हाथ उठाकर कहा, 'और मैं ये नाराज़गी में नहीं कह रही।' फिर वो मुस्कुरा उठी। 'अच्छे मन से कह रही हूं। मैं तुमसे ज्यादा देर नाराज़ नहीं रह सकती, जानती हो ना?'
मिनी जानती थी। एक मुस्कुराहट उसके होठों पर भी तैर गयी और जैसे मन का भारीपन धुल गया। 'कुछ खाओगी?' उसने पूछा।
'नहीं, भूख नहीं है मुझे।' माँ मिनी को निहार रही थी। मिनी को लगा जाकर गले लग जाए पर वो उठकर माँ के लिए पानी लेने चली गयी।
उसने ग्लास टेबल पर रख दिया पर माँ ने उठाया नहीं। तब मिनी ने कुछ अजीब सा गौर किया कि माँ इतनी बारिश में आयी थी पर बिल्कुल भी गीली नहीं थी।
तभी फ़ोन की घंटी बजी। पापा का फ़ोन था। मिनी ने फ़ोन उठाया तो उधर से पापा की थर्रायी हुई आवाज़ आयी। 'मिनी…'
'पापा, क्या हुआ?' उसने घबरा कर कहा और माँ की तरफ़ देखा। माँ की आंखें भर आयी थीं। कुछ अजीब सा था उसकी आंखों में।
'मिनी…मिनी, तुम्हारी मां नहीं रही, बेटा।'
★★★
What should I say, I realised how end changes everything. Definition of right and wrong.
ReplyDeleteYou're right. Thank you so much for reading! 😊
DeleteHeart touching story. Mother bachchose mile bina nahi jati hain
ReplyDeleteThank you for reading. Glad you liked it. :-)
Deleteसुंदर कहानी।
ReplyDeleteधन्यवाद! :-)
DeleteTarang, I got goosebumps. What a sweet everyday kind of story with such a heartrending end.
ReplyDeleteThank you so much, Tulika, for reading and for your lovely comment! 💛
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