Sunday, January 15, 2023

दिल्ली की सर्दी

 


Image:  Alex Padurariu, Unsplash


'कहाँ रख दिया मैंने अपनी प्यारी टोपी को?' भास्कर ने सोचा। यहीं बिस्तर पर ही तो रखा था शायद। रज़ाई हटाकर, तकियों को हटाकर, यहां तक कि अलमारी में भी देख लिया जहां उसके होने की कोई सम्भावना नहीं थी, पर वो नहीं मिली। एक तो इतनी ठंड से बड़ी कोफ़्त होती है उसे। और उसपर से इन टोपियों और ज़ुराबों की गाहेबगाहे खो जाने वाली आदत बहुत बुरी होती है। बस यही एक टोपी है उसके पास, डार्क मरून रंग की, हाथ से बुनी हुई, जिसे वो घर पे पहनता है। बाहर पहन कर जाओ तो उसके दोस्त कहते, "अरे यार, तुझे कुछ ज़्यादा ही ठंड लगती है। आज के ज़माने में ये वाली टोपी कौन पहनता है? भाभी जी चिढ़ाती नहीं तुझे?"


भाभी जी याने भास्कर की पत्नी नलिनी। वो उसे बहुत चिढ़ाती है, पर अब ठंड लगती है तो लगती है। लोग ना चिढ़ाएं इसके लिए क्या वो फ़न्ने खां बनता फिरे? उसका बस चले तो वो रज़ाई ओढ़कर घूमे। गीतकारों ने दिल्ली की सर्दी पर गाना यूं ही नहीं लिख दिया। उसके मुजफ्फरपुर में तो फिर भी सर्दी थोड़े अदब से आती है पर दिल्ली की सर्दी तो भाई साहब बवाल है। 


नलिनी लेखिका हैं और आजकल स्टडी में बैठी डेडलाइन का पीछा कर रही हैं। भास्कर एक अच्छे पति होने का फ़र्ज निभाते है और उन्हें बिल्कुल डिस्टर्ब नहीं करते। बस लवली-लवली तीन चार दौर चाय का जरूर चलता है।


ये लो, चाय की बात आयी तो अब उसे चाय की तलब होने लगी। और वो चल पड़ा चाय बनाने, मस्त इलायची वाली मीठी, गाढ़ी चाय। नलिनी को ऐसी ही चाय पसंद है। पर किचन में एक बड़ा सा disappointment मुंह बाए खड़ा था, दूध के खाली पतीले के रूप में। यार! अब दूध लाने बाहर जाना होगा वो भी बिना टोपी के। क्या ऐसे नहीं हो सकता कि दो तीन महीने के लिए उसके चारो ओर एक गर्म, अदृश्य बबल बन जाए? बस इतना हो जाए, वो ज़्यादा नहीं मांगता। 


बाहर निकला तो सर्दी के थपेड़े लप्पड़ के माफ़िक लग रहे थे। "और भाई साहब, क्या हाल है?" पड़ोस वाले शर्मा जी ने बत्तीसी निलाकर पूछा।


इतना खुश होने की कौन सी बात है भाई? "अरे भाई साहब, बहुत ठंड है," कहकर भास्कर निकल लिया। 


घर लौटा तो फ़ौरन किचन में गैस जला कर खड़ा हो गया। पहले तो कुछ सेकेंड्स हाथ सेका फिर एक चूल्हे पर दूध और दूसरे पर चाय चढ़ा दिया। शायद नलिनी को पता हो। 


"ये लीजिए नलिनी जी, गरमा गरम चाय।"


"ओह, थैंक्यू, भास्कर जी। शदीद जरूरत थी इसकी।" नलिनी ने लपक कर चाय का कप उठा लिया।


"थैंक्यू छोड़िए, आप तो हमें ये बता दीजिए कि आपने मेरी टोपी को देखा है? कब से ढूंढ रहे हैं पर मिल नहीं रही। 


नलिनी जी मुस्कुरायी और फिर कहा, "जी हां, देखा है।"


"कहाँ?"


"आपके सिर पे।"


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2 comments:

  1. सही रहा ये भी। दिल्ली की सर्दी ही ऐसी है कि क्या चीज पहनी है क्या नहीं इसका भान ही नहीं रहता। बेचारे भास्कर भी क्या गलती थी।

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    1. ये कहानी पढ़ने के लिए शुक्रिया। ह्यूमर लिखती नहीं मैं, सोचा एक बार ट्राय करते हैं। :)

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